मेरे द्वारा चार वर्णों की रचना गुण और कर्मों के हिसाब से की जाती है, फिर भी तू मुझे कभी न खत्म होना वाला और कर्मों के बंधन से मुक्ति ही जान ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं, अब ऐसा मान लेते हैं कि जो जिस घर में जन्म लेता है, वह उसी वर्ण का कहलाता है। जबकि वर्ण व्यवस्था गुण और कर्म के आधार पर शुरू हुई थी। पहले जब बच्चे को पढ़ाई के लिए गुरुकुल भेजा जाता था, तब तक वह किसी वर्ण का नहीं कहलाता था। वहां गुरु अपने शिष्यों की रुचि को जानकर उसके हिसाब से उन्हें पढ़ाते थे।   
वेदों को पढ़ने में रुचि लेने वालों को ब्राह्मण, युद्ध कला में महारथी को क्षत्रिय, व्यापार में रुचि वाले को वैश्य और सेवा भाव वाले को शूद्र की उपाधि दी जाती थी। इसके बाद वे समाज में उसी के हिसाब से काम करते थे। यही भगवान कह रहे हैं कि मैंने गुणों और कर्मों के आधार पर चार वर्णों की रचना की हैं, जिससे सभी मनुष्य कर्मों में लगे रहें। ये सब करते हुए भी तुम मुझे कभी न खत्म होने वाला और कुछ न करने वाला जानो। सब कुछ करते हुए भी भगवान कह रहे हैं कि मैं कुछ भी नहीं करता।