उज्जैन ।  ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में कार्तिक-अगहन मास में भगवान महाकाल की पांच सवारियां निकाली जाएंगी। अवंतिकानाथ चांदी की पालकी में सवार होकर तीर्थ पूजन के लिए मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट जाएंगे। पहली सवारी 31 अक्टूबर और अंतिम सवारी 21 नवंबर को निकाली जाएगी। पं. महेश पुजारी ने बताया कि महाकाल मंदिर की पूजन परंपरा में महाराष्ट्रीयन पद्धति का प्रभाव है। मंदिर में समस्त व्रत-त्योहार ग्वालियर स्टेट के पंचांग से मनाए जाते हैं। महाराष्ट्रीयन समाज में प्रत्येक माह की शुरुआत शुक्ल पक्ष से मानी जाती है, इसलिए महाकाल मंदिर में कार्तिक-अगहन में भगवान महाकाल की सवारी निकालने का क्रम कार्तिक शुक्ल पक्ष से शुरू होता है तथा अगहन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है। इस एक माह में जितने भी सोमवार आते हैं, उन पर भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है।

पांच नवंबर को शनि प्रदोष

कार्तिक मास में पांच नवंबर को शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है। महाकाल मंदिर की पूजन परंपरा में शनि प्रदोष का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान महाकाल उपवास रखते हैं। भगवान को सुबह नैवेद्य आरती में फलाहार के रूप में दूध का भोग तथा संध्या आरती में नैवेद्य लगाया जाता है।

गोपाल मंदिर में होगा हरि-हर मिलन

मान्यता के अनुसार चातुर्मास में भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन का भार भगवान शिव के हाथों में सौंपकर राजा बलि के अतिथि बनकर पाताल लोक में वास करते हैं। देवउठनी एकादशी पर देवशक्ति जागृत होती है, इसके चार दिन बाद बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव पुन: सृष्टि के संचालन का भार भगवान विष्णु को सौंप देते हैं। कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी पर छह नवंबर को इसी धर्म परंपरा का निर्वहन करने के लिए भगवान महाकाल रात 11 बजे चांदी की पालकी में सवार होकर गोपाल मंदिर जाएंगे। यहां हरि-हर का मिलन होगा, इसके बाद रात 2.30 बजे भगवान महाकाल की सवारी पुन: महाकाल मंदिर के लिए रवाना होगी।

कार्तिक-अगहन में कब-कब सवारी

- 31 अक्टूबर - कार्तिक मास की पहली सवारी।

- 06 नवंबर - रात 11 बजे हरि-हर मिलन की सवारी।

- 07 नवंबर - कार्तिक मास की दूसरी सवारी।

- 14 नवंबर - अगहन मास की पहली सवारी।

- 21 नवंबर - अगहन मास की अंतिम सवारी।