"मध्य प्रदेश में प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त ऐक्शन, मोहन सरकार का फैसला रद्द"
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मध्य प्रदेश सरकार को बड़ा झटका देते हुए उसका एक सरकारी आदेश रद्द कर दिया है। यह आदेश भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारियों को भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट की समीक्षा करने का अधिकार देता था। कोर्ट ने इसे नियमों का खुला उल्लंघन बताया और कहा कि यह आदेश पहले से दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवमानना है। दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने जून 2024 में एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि जिला कलेक्टर जैसे IAS अधिकारी, वन अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (APAR) की समीक्षा करेंगे।
इस फैसले के खिलाफ कुछ IFS अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना था कि यह फैसला न केवल अनुचित है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का उल्लंघन भी है। जबकि 22 सितंबर सन् 2000 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि वन विभाग में अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद तक के अधिकारियों के लिए रिपोर्टिंग प्राधिकारी तत्काल वरिष्ठ अधिकारी होना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि केवल प्रधान मुख्य वन संरक्षक के मामले में ही रिपोर्टिंग प्राधिकारी वन सेवा से संबंधित व्यक्ति के अलावा कोई अन्य व्यक्ति होगा, क्योंकि IFS में उनसे वरिष्ठ कोई नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य सरकार का आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा 22 सितंबर 2000 को दिए गए फैसले के बिल्कुल खिलाफ है। उस फैसले में कोर्ट ने निर्देश दिया था कि IFS अधिकारियों की रिपोर्ट सिर्फ वन सेवा के ही वरिष्ठ अधिकारी द्वारा लिखी जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा “मध्य प्रदेश में एक ऐसी प्रथा का पालन किया जाता है जिसमें IFS अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जिला कलेक्टर या वरिष्ठ अधिकारी के रूप में कार्यरत IAS अधिकारी शामिल होते हैं। जबकि देश के लगभग सभी राज्य सुप्रीम कोर्ट के 2000 के आदेश का पालन कर रहे हैं। सिर्फ मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है।जो इस आदेश को नजरअंदाज कर रहा है और अपनी अलग व्यवस्था चला रहा है।”
कोर्ट ने कार्रवाई से खुद को रोका, जारी किया कड़ा आदेश
कोर्ट ने यह भी माना कि राज्य सरकार का आदेश अदालत की अवमानना के दायरे में आता है, लेकिन फिलहाल अधिकारियों के खिलाफ कोई अवमानना कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि वह ऐसा कर सकता था, लेकिन सरकार को सुधार का मौका दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिया है कि मध्य प्रदेश सरकार को एक महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों के अनुसार नए नियम तैयार करने होंगे। साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि आगे से IFS अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट केवल उन्हीं अधिकारियों द्वारा लिखी जाए, जो उनके सेवा कैडर से हों और उनसे वरिष्ठ हों।
क्या होता है गोपनीय रिपोर्ट (APAR)?
सरकारी सेवाओं में अधिकारियों के कामकाज का सालाना मूल्यांकन गोपनीय रिपोर्ट के माध्यम से किया जाता है, जिसे APAR (Annual Performance Appraisal Report) कहते हैं। यह रिपोर्ट तय करती है कि अधिकारी को प्रमोशन मिलेगा या नहीं और उसकी सेवा रिकॉर्ड में यह अहम भूमिका निभाती है। बुधवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा “ऐसा लग रहा है कि अन्य राज्य इस प्रथा का पालन कर रहे थे। जिसमें ‘रिपोर्टिंग प्राधिकारी’ और ‘समीक्षा प्राधिकारी’ एक ही बैकग्राउंड के होते थे।
जिसमें ‘रिपोर्टिंग अथॉरिटी’ उस अधिकारी से ठीक वरिष्ठ होता था। जिसके बारे में रिपोर्ट की जा रही होती थी और ‘समीक्षा अथॉरिटी’ ‘रिपोर्टिंग प्राधिकारी’ के प्रदर्शन की निगरानी करने वाला अथॉरिटी होता था, वहीं मध्य प्रदेश राज्य इस स्थापित प्रथा का पालन नहीं कर रहा था।” सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में आगे कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने सितंबर 2004 में स्पष्ट किया था कि शीर्ष अदालत का सितंबर 2000 का आदेश वन विभाग के भीतर काम करने वाले वन अधिकारियों पर लागू था और विभाग के बाहर काम करने वाले वन अधिकारियों पर लागू नहीं था।