नर्मदा परिक्रमा या यात्रा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी या पंचकोशी यात्रा होती है और दूसरा हर वर्ष नर्मदा की परिक्रमा होती है।
प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है। नर्मदा परिक्रमा करना बहुत ही पुण्य का कार्य माना जाता है। नर्मदा नदी सभी नदियों से भिन्न दिशा में बहती है। आओ जानते हैं नर्मदा पंचकोशी यात्रा के बारे में 10 बातें।
नर्मदा यात्रा और परिक्रमा का महत्व : नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वतीजी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोड़ता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। यह नदी विश्व की पहली ऐसी नदी है जो अन्य नदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है।

1.पंचकोसी यात्रा नर्मदा परिक्रमा के कई रूप है जैसे लघु पंचकोसी यात्रा, पंचकोसी, अर्ध परिक्रमा और पूर्ण परिक्रमा।

2. करीब 50 किमी की दुर्गम यात्रा में हजारों श्रद्धालु ओंकारेश्वर से अंजरुद, सनावद, टोकसर, सेमरला, बड़वाह, सिद्धवरकूट होते हुए वापस ओंकारेश्वर पहुंचकर नर्मदा परिक्रमा पूरी करेंगे। हालांकि एक कोस करीब 3.2 किलोमीटर का होता है। पांच कोस यानी करीब 16 किलोमीटर का माना गया है।

3. मान्यता अनुसार यह यात्रा 5 दिवसीय होती है जिसमें हजारों श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। 5 दिन में 90 किलोमीटर यात्रा करते हैं श्रद्धालु। यात्रा के पड़ाव में रुककर भजन, कीर्तन के साथ ही संत्संग का आनंद लेते हैं।

4. यह यात्रा यूं तो तीर्थ नगरी अमरकंटक, ओंकारेश्वर और उज्जैन से प्रारंभ होती है। जहां से प्रारंभ होती है वहीं पर समाप्त होती है। इसके अलावा कई लोग जत्थे बनाकर अपने अपने क्षेत्र से यात्रा प्रारंभ करके वहीं पर समाप्त करते हैं।

5. परंतु कहा यह जाता है कि कोईसी भी तीर्थ यात्रा उज्जैन के बगैर न तो प्रारंभ होती है और न समाप्त। इसीलिए एक बार उज्जैन तो सभी को आना ही होता है।

 
6. तीर्थ यात्रा के लिए शास्त्रीय निर्देश यह है कि उसे पद यात्रा के रूप में ही किया जाए। पंचकोशी यात्रा पैदल चलकर ही की जाती है। छोटी-बड़ी मंडलियां बनाकर यात्रा करते हैं। यात्रा में कथा कीर्तन, सत्संग का क्रम बन रहता है।

7. परिक्रमा आरंभ् करने के पूर्व नर्मदाजी में संकल्प करें। माई की कडाही याने हलुआ जैसा प्रसाद बनाकर कन्याओं, साधु तथा अतिथि अभ्यागतों को यथाशक्ति भेजन करावे। नर्मदाजी में स्नान करें। जलपान भी नर्मदा जल का ही करें।

8. दक्षिण तट की प्रदक्षिणा नर्मदा तट से 5 मील से अधिक दूर और उत्तर तट की प्रदक्षिणा साढ़े सात मील से अधिक दूर से नहीं करना चाहिए।

9. कहीं भी नर्मदा जी को पार न करें। जहां नर्मदा जी में टापू हो गए वहां भी न जावें, किन्तु जो सहायक नदियां हैं, नर्मजा जी में आकर मिलती हैं, उन्हें भी पार करना आवश्यक हो तो केवल एक बार ही पार करें।

10. बहुत सामग्री साथ लेकर न चलें। थोडे हल्के बर्तन तथा थाली कटोरी आदि रखें। सीधा सामान भी एक दो बार पाने योग्य साथ रख लें। बाल न कटवाएं। नख भी बारंबार न कटावें। वानप्रस्थी का व्रत लें, ब्रह्मचर्य का पूरा पालन करें। सदाचार अपनायें रहें। यात्रा के नियम और मार्ग जानकर ही यात्रा करें।