सनातन धर्म में पूजा के दौरान नवग्रह की स्थापना की जाती है. नवग्रहों की पूजा के बारे में विशेष महत्व बताया गया है. सनातन धर्म में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने के दौरान परिक्रमा करने की मान्यता है. हमारे धर्म में मान्यता है कि नवग्रहों की पूजा करने के दौरान सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की जाती है. अगर आप पूजा के दौरान नवग्रह की परिक्रमा कर रहे हैं, तो उनकी परिक्रमा करने के कई नियम बताए गए हैं. आइए जानते हैं नवग्रहों की पूजा और परिक्रमा के बारे में विस्तार से. साथ ही जानेंगे नवग्रह की पूजा के दौरान किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

ग्रहों के राजा हैं सूर्य
सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना जाता है. सूर्य देव की पूजा कर रहे हैं, तो ब्रह्म मुहूर्त देखते हुए जल अर्पित करना चाहिए. सूर्य देव की 11 परिक्रमा लगाए जाते हैं. वहीं, चंद्रदेव की पूजा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि उनकी पूजा के बाद 5 बार परिक्रमा लगानी चाहिए. ऐसा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है.

मंगल और बुध देव की कितनी परिक्रमा
मंगल ग्रह को लाल ग्रह माना जाता है. इन्हें भूमि का पुत्र कहा जाता है. अगर कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति कमजोर है, तो मंगल देव की 12 परिक्रमा लगाएं. वहीं, बुध देव को संदेशवाहक के नाम से भी जाना जाता है. इन्हें व्यापार का देवता कहते हैं. बुध देव की पूजा करने के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि उनकी 6 परिक्रमा लगानी चाहिए.

मंगल और बुध देव की कितनी परिक्रमा
मंगल ग्रह को लाल ग्रह माना जाता है. इन्हें भूमि का पुत्र कहा जाता है. अगर कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति कमजोर है, तो मंगल देव की 12 परिक्रमा लगाएं. वहीं, बुध देव को संदेशवाहक के नाम से भी जाना जाता है. इन्हें व्यापार का देवता कहते हैं. बुध देव की पूजा करने के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि उनकी 6 परिक्रमा लगानी चाहिए.

राहु की लगाएं 4 परिक्रमा
कुंडली में राहु दोष या फिर राहु की स्थिति कमजोर है, 4 बार परिक्रमा लगाएं. समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान बढ़ाता है. केतु स्वास्थ्य, धन, भाग्य और घरेलू सुखों का कारक होता है. केतु की 2 बार परिक्रमा लगानी चाहिए.